अपेक्षा….

दिनांक : 25-मई-2020
सोमवार – मुंबई (दहिसर)

विषय : अपेक्षा

नमस्कार दोस्तों प्रस्तुत हु अपने नए लेख अपेक्षा को लेकर | आशा रखता हु आपको पसंद आएगा |

दिन के 3:10 बज रहे थे और प्रीतम अपने पोर्टेबल रेडियो सेट पर विविध भारती से सखी सहेली प्रोग्राम सुन रहा था | आज तो प्रोग्राम मे ममताजी से संग बड़ी बुवा भी आई थी | ममता जी सखियों के पत्र पढ़ रही थी और बड़ी बुवा जवाब दे रही थी | सखियों की सिकायत पर ममता जी की प्यारी मुस्कुराहट प्रीतम के चहरे पर भी हल्की स्मित ला रही थी | आज तो ममताजी के खजाने से “पर्बतों के पैडों पर साम का बसेरा हैं….” जैसे बेहतरीन गाने भी प्रसारित हो रहे थे और इस सब मे प्रीतम अपनी मुख्य समस्या को भूल दो पल के सुकून को तलास रहा था | दर्सल आज प्रीतम का ध्यान अपने पसंदीदा प्रोग्राम सखी सहेली और अपने मन मे चल रहे विचारों के बीच गौते खा रहा था |

तभी कमरे से उसकी बड़ी दीदी की आवाज आती हैं मुन्ना अब रेडियो बंध कर और रेडी होजा | आज के दिन ही तेरे जिजू को भी अहमदाबाद जाना था जो सब जीमेदारी मुझ अकेले पर आ गई वोह होते तो इस समय तुम्हें कुछ सुझाव ही देते लड़की को क्या पूछना हैं और उसके सामने कैसे पैस आना हैं चल मुन्ना अब रेडी हो जा 4 बजे के करीब निकलेंगे तो 5 बजे के करीब वैशाली के घर पहोच पाएंगे |

इधर प्रीतम अजीब उलझन मे था | उसकी उलझन यह थी की आज वोह जीस लड़की को देखने जा रहा था, अजी देखने क्या जा रहा था बस हामी भरने जा रहा था क्युकी मेट्रीमोनी साइट पर पहले से ही उसके परिवार से अन्य सब तय हो चुका था | लड़की के पिता सेठ जगदिस चंद मुंबई के जाने माने व्यापारी हैं उसने अपनी लड़की वैशाली को इतने प्यार से बडा किया की प्यार कब जिद्द मे परिवर्तित हो गई यह किसी को पता ही नहीं चला और इस जिद्द ने बुड्ढे पिता जगदीश चंद की नाक मे दम कर दिया |वैशाली ने युवानी की दहलीज पर ही शराब,क्लब और बिना जरूरत खर्च जैसे आज 10 हजार रूपीए खर्च नहीं किए तो खाना नहीं पचेगा जैसे उड़ाऊ शोख पाल बाप की जिंदगी मे झहर घोल दिया और हद तो तब हो गई जब वैशाली ने बिना पूछे घर मे किसीसे बात किए अपने एक बोईफ्रेंड से शादी करली और उसके साथ कनेडा रहने चली गई | तीन महीने मे प्यार दूषण बन गया और कनेडा वाला लड़का ब्लेकमेलर | हर तीसरे दिन 500 से 5 हजार डॉलर की मांग के साथ वैशाली के पिता का फोन बजने लगा था और इस सब मे परेशान सेठ जगदिस चंद के पारिवारिक और व्यापारिक जीवन को तबाह कर दिया था |इस सब से निजात पाने सेठ जगदीश चंद ने कनेडा वाले लड़के को फूल एण्ड फाइनल पेमेंट कर वैशाली का डाइवॉस बड़ी मुस्किल से करवाया था |

अब डइवॉस के बाद भारत मे सेठ जगदीश चंद ने बड़ी मुस्किल से वैशाली को दुबारा शादी के लिए मानया था और वैशाली भी सशर्त इस शादी के लिए मानी थी | और सोचने वाली बात तो यह हैं के सेठ जगदिश चंद जैसे खुशाल परिवार के समकक्ष कोई परिवार वैशाली से शादी के लिए अपने लड़के की जिंदगी क्यू खराब करे | इस लिए शेठ जगदीश चंद ने मेट्रीमोनी साइट के जरिए प्रीतम का चुनाव किया था | मध्यमवर्गीय प्रीतम को इस शादी से कुर्ला जैसे पोस एरिया मे बड़ा फ्लेट फोर्ट एरिया मे अपना एक एलेक्ट्रॉनिक समान का शोरूम और हर महीने वैशाली की शर्त अनुसार 3 लाख रूपीए हाथ खर्ची के लिए शेठ जगदिश चंद से मिलना तय हुवा था लेकिन इस मे वैशाली की एक और शर्त भी थी की प्रीतम समाज के लिए उसका पति होगा पर साधारण शब्दों मे वोह केवल मेरा मेनेजर कम पर्सनल नौकर होगा | प्रीतम का वैशाली के शरीर पर कोई हक्क नहीं होगा | रसोई, घर की सफाई और अधिकतर वह कार्य जो घर की महिला की जिम्मेदारी हैं वोह सब प्रीतम करेगा शोरूम प्रोफेसनल मेनेजर के भरोसे चलेगा और हिसाब सब वैशाली को मिलेगा और शेठ जगदीश चंद द्वारा दिए गए 3 लाख महिना भी वैशाली के अकाउंट मे जमा होगा और उसको कहा कैसे खर्च करना हैं उसमे कोई वैशाली को रोक टॉक नहीं करेगा और इन सब शर्तों का पहले से प्रीतम को ज्ञात था |

हर किसी की अपेक्षाए जुड़ी थी इस सबंध से पर प्रीतम के पैर अब थोड़े डगमगा रहे थे अपने जीवन को मानो वोह बंधुवा मजहदूर बनाने जा रहा था और यही विचार उसे झँझोड़ रहा था की क्या फिर मेरा कोई अस्तित्व होगा इस समाज मे अगर समाज को मेरी शादी की यह सत्यता का अहेसास हुवा तो समाज मुझे हीनभाव से देखेगा मेरे ठिठोले उड़ाएगा और सबसे महत्वपूर्ण विचार यह था की अगर इतने पैसे मिल भी गए तो क्या रहा तो मैं नौकर ही ना | न प्रेम मिल रहा न स्त्रीसुख फिर मैं यह शादी क्यू कर रहा हु | माना की पैसे जीवन मे बहोत महत्व रखते हैं पर अपनी आजादी से भी बढ़कर नहीं होते पैसे |

4 बजे वोह और उसकी बड़ी दीदी स्पेशल टेकसी से वैशाली के घर की और निकले और यही सब विचार उसके मन मे बार बार आ रहे थे | और इस सब विचारों से अपना मन भटकाने हेतु उसने टेकसी मे रेडियो ऑन करदिया | विविध भारती पर यूनस खान का मशहूर प्रोग्राम हैलो फर्माइस चल रहा था और यूनुस खान अपने विशिस्ट अंदाज मे श्रोता का मनोरजन कर रहे थे |

5 बजे सुरू हुई मिट्टिग तकरीबन साम 7 बजे तक चली| सब की अपेक्षा अनुसार ही सब तय हुवा और प्रीतम के मन मे चल रहे विचारों को खुद प्रीतम ने अपने स्वार्थ और रुपयों की सुनहरी परत के नीचे दबा दिया | वैशाली ने आज से ही अपना हक्क जमाना सुरू करदिया हो वैसे मजाक मजाक मे बोल दिया आज मिठाई महाराज नहीं प्रीतम जी बनाएंगे और शेठ जगदीश चंद और दीदी ने ठिठोले मार इस को स्वीकृति दे दी |प्रीतम ने स्मित कर अपनी इस बँधवा मजदूरी को हामी भरदी आज से ही | प्रीतम ने हलवा बनाया काजू किसमिस के संग उन सब वस्तु का प्रयोग कर लिया जो उसके घर किचन मे दशेरा दिवाली जैसे त्योहार मे बड़ी मुस्कुल से 50 ग्राम से अधिक नहीं आती थी | इसी हलवे के कमाल ने बिना कोई मुहरत देखे अगले इतवार को ब्रह्म मुहरत मे शादी की तारीख नक्की कर ली |

5 साल बाद

रात के 8 बजे थे आकाशवाणी के विविध भारती पर हवा महल कार्यक्रम चल रहा था नाट्य का विषय था “स्वाभिमान” | प्रीतम अपने किचन मे अंडा भुरजी बना रहा था और रेडियो का लुफ़त उठा रहा था जबकी वैशाली अपने दोस्तों के संग सीटींग रूम मे वोडका मार्टीनी के आनंद मे थी | वैशाली के जीवन मे प्रीतम की कोई गणना नहीं थी जब की वैशाली ही इन सब सुविधा का प्रीतम के जीवन मे एक मात्र श्रोत थी | अब न प्रीतम का कोई स्वमान था न घर मे कोई इज्जत यहाँ तक की जिसने यह शादी कारवाई थी वोह बड़ी दीदी भी प्रीतम के जीवन से 2 साल पहले ही बाहर हो चुकी थी | प्रीतम अब केवल एक आलसी व्यक्ति था जिनको खाना पीना रहना सब मुफ़्त मे मिल रहा था और खर्च करने के लिए पैसे वोह कभी कभी वैशाली से मांग लेता था या किचन के खर्च से निकाल लेता था | सबकी अपेक्षा अनुसार सब का जीवन बित रहा था पर सेठ जगदीश चंद के हालत मे आज भी कोई फरक नहीं था | हर महीने भेजे जाने वाले 3 लाख रुपये वैशाली हपते के 10 दिन मे ही उड़ा देती थी | 20 हजार का लिपस्टिक और 30 हजार मेकअप के डजनो सेट 10 हजार से 50 हजार के जूते अलमारी मे सड रहे थे बेड सीट पर 5000 से 25000 तक खर्च कर वैशाली मानो बाप से कोई बदला ले रही थी | एलेक्ट्रॉनी शोरूम की हालत तो एसी थी की आधे से ज्यादा व्यापार मेनेजर और सहकर्मी गबन मे खा जाते थे और रही सही अमाउन्ट जो हाथ मे आए उससे खर्च निकलना बहोत था | और मुफ़्त खोरी की आदत ने एक मिडलक्लास लड़के को ब्लेकमेलर बना दिया था | बात बात मे शादी तौड़ने और समाज मे सब हकीकत बताने की धमकी से सेठ जगदीश चंद अपने भाग्य को कोष रहे थे | और यह सब आइडिया की जनक वैशाली अपने बाप को लूट रही थी |

आखिर होता भी क्या सब की अपेक्षा जो जुड़ी थी इस व्यापारी सबंध से .. ..

अस्वीकरण : लेख मे मेरे निजी विचार हैं | किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति / घटना / जगह से लेख का संबंध केवल सयोंग हैं |

नोंध : लेख मे उपयोग विविध भारती के विविध कार्यकर्म के नाम और उसके प्रस्तुत करता – ममता जी, बूढ़ी बुवा, यूनुस खान का इस लेख मे केवल भूमिका हेतु उपयोग हैं | भारतीय रेडियो सर्विस मे आपका कार्य सराहनीय हैं |

सपनों की वास्तविकता

दिन : 18-05-2020
सोमवार – मुंबई

नमस्कार दोस्तों लंबे अंतराल के बाद आज फिर प्रस्तुत हुवा हु #HTL के माध्यम से एक छोटी सी कहानी लेकर
सपनों और वास्तविकता का दर्शन कराती इस कहानी मे संघर्ष और सफलता के बीच उलझे दो युवा की कहानी हैं

लड़की बारवी मे थी और लड़का फर्स्ट यर विध्ययर्थी था दोनों मे आत्म विश्वास भरा हुवा था उम्मीद से बेहतर पढ़ाई दोनों की पहचान थी | लेकीन दोनों एक अजीब कसमस मे फसे थे जीवन के इस मोड पर दिल सुहाने सपने देख रहा था तो दिमाग उज्जवल भविष्य के लिए कुछ देखना नहीं चाह रहा था |

दिल दिमाग की इस कसमकस मे मिलते बिछड़ते अभी थोड़े दिन बीते ही थे की लड़की के पिता का देहांत हो गया
परिवार की जिम्मेदारी और अपने प्रेम के बीच अब चुनाव नई घड़ी थी, दूसरी तरफ लड़के के घर के हालत ही इतने दयनीय थे की वोह पहले से घर के माली हालत के बोझ तले दबा हुवा था पर द्रढ निश्चयी था की हमारा व्यक्त आएगा

लड़की ने अब तय कर लिया था की पारिवारिक जवाबदारी पहले फिर व्यक्त मिलेगा तो अपने लिए जीऊँगी किसी दिन | लड़के के लिए तो यह भी ऑपसन नहीं था उसे तो पहले अपने परिवार की आर्थिक स्थिति बहेतर करनी थी
लड़का इतना जनता था की दिन रात महेनत करने से पैसे नहीं बनते पैसे बनते हैं अच्छी शिक्षा से पाए उच्च पद से
धीरे धीरे दोनों मे बात कम होने लागि पहले दिन मे एक बार से सप्ताह मे एक बार और अब तो यह परीस्थिति थी की आज दोनों को बात किए 1 साल से ज्यादा समय हो गया था | लड़की अब फाइनल यर की स्टूडेंट थी जब की लड़का अब एक सोफ़टवर कंपनी मे नया नया जॉब पर लगा था और उसे अमरीका जाने का प्रस्ताव मिला था |

लड़की भी पार्ट टाइम जॉब तथा होम साइंस से सीखे सिलाई बुनाई से अपने घर को संभाल रही थी पारिवारिक जवाबदारी मे अपने अतीत और प्रेम को झहर के तरह बिना आवाज किए एक ही घुट मे घटक कर जी रही थी
लड़के के पास सुनहरा भविष्य सामने खडा था जबकी लड़की आज भी भविष्य को लेकर चिंतित थी इस लिए पूरी महेनत से अपने आज को सवार रही थी और रोज थोड़ा थोड़ा अपने पहले प्यार को भूल रही थी

आज लड़के के पास एक लिफाफा था जिसमे अमरीका मे जॉब के साथ अन्य सुविधा का प्रस्ताव था पर मन आज न जाने क्यू अमरीका की बजाए कॉलेज केम्पस की तरफ दौड़ रहा था जैसे देश नहीं पूरी उसकी दुनिया छूट रही हो
भविष्य के लिए आज भूतकाल और वर्तमान मे संघर्ष था वर्तमान जैसे भूतकाल का ऋणी हो और आज अपना ऋण मांग रहा हो लड़का यह तय नहीं कर पा रहा था वर्तमान की इस घड़ी अब वोह भूतकाल को चुने या भविष्य को चुने |

लड़के के मन मे हजार प्रश्न भी थे कही अब उसके जीवन मे कोई और न आया हो काफी समय हो गया हैं बात भी नहीं हुई फिर खुद को समझते हुवे बोल नहीं नहीं एसा नहीं होगा फिर सोच मुझे स्वार्थी और एम्बेसिस समझ कही वोह मुझे धिक्कार न दे आज लिफाफा लिए लड़के के कदम न घर की और बढ़ रहे थे न कॉलेज केम्पस की तरफ बढ़ रहे थे | अजीब अनिश्चितता मे घिरा मन हजार सवाल अपने आप को पुछ जवाब भी अपने आप दे रहा था |

दूसरी तरफ लड़की घर कॉलेज जॉब को संभाल ने मे अपने पहले प्यार के संग अपने आप को भी मानो भूल चुकी थी उसे तो यह भी पता नहीं था जीवन मे अब उसे करना क्या हैं न सपने थे न उज्ज्वल भविष्य का कोई मोह था अब तो बस रूटीन लाइफ थी सुबह उठो घर कार्य करो कॉलेज जाओ कॉलेज से सीधा जॉब पर और देर सायं घर आकार घर कार्य खत्म कर सो जायों जैसे यही उसका जीवन हो गया था न त्योहार का हर्ष न किसी आस पड़ोस के बनाव पर गम उसकी जिंदगी एक पहिये मे मानो फस गई थी | सजना सवरना अब केवल शनिवार के दिन ऑफ ड्रेस कोड के चलते होता था अन्यथा वह भी नहीं होता | न भूतकाल वर्तमान के बीच न वर्तमान का भविष्य के प्रति कोई संघर्ष बचा था जीवन एकांत और तृप्ता से भरा हुवा किसी भी इच्छा से परेह बोझ युक्त मुर्दा जीवन का परिवहन कर रही थी

लड़के ने पूरा दिन सोचा और इस निष्कस पर आया कल उसके घर जाऊंगा और जो भी सत्य हैं उसे रूबरू स्वीकार करूंगा | अगले दिन लड़के ने ऑफीस लेट आने के लिए फोन किया और सीधा लड़की के घर की और बढा समाज और अपनी समझ दोनों का पूरा गणित मन मे चल रहा था | सुबह सुबह पूरी त्यारी से वह लड़की के घर पहोचा | बेल बजाई थोड़ा वक्त लगा दुबारा बेल बजाई घर मे कोई चहल पहल नहीं थी तीसरी बार बेल बजाने वाला ही था की दरवाजा खुला और सामने एक वृद्ध महिला खड़ी थी | लड़के लड़की के बारे मे पूछा क्या यह उसीका घर हैं वृद्ध महिला ने केवल हा मे जवाब दिया और कहा आईए | इतने मे घरकार्य कर रही लड़की ने पूछा माँ कौन हैं और सामने आकर खड़ी हुई दोनों की आँख मे एक अलग चमक थी एक दुरसे को देख दोनों के स्वर मे थोड़ी खरास और चहरे पर नया तेज था गंगा जमुना की तरह चारों आखे मानो उफान पर थी पर महदेव ने जैसे जटा मे बांध रखा था तो बस केवल मंद प्रावाह से बह रही थी |

लड़के ने पूरी बात बताई लड़की ने भी पूरी बात सुनी कुछ अपनी सुनाई और कहा अभिनदंन अब आप अमरीकावाले हो गए पर परदेश जाकर हम भारतीयों को भूल न जाना जैसे मैं भूल गई थी जीवन मे थोड़ी सी जवाबदारी मे आपको लड़के ने फिर दोहराया भूल गया होता तो आज यहा नहीं आया होता मैं तुम्हें आज यह कहने आया हु की जो सपने हमने देखे थे वोह अब सच होने का समय आ गया हैं बस मुझे तुम्हारा साथ चाहिए | लड़की ने बड़े विनम्रता से कहा मैंने सपने देखे थे वोह तो कब के आँसू और जवाबदारी मे बह गए अब तो केवल मेरे जीवन मे आपकी याद हैं जो आज आपने यहा आकर मुझे याद दिलाया हैं वरना मैं तो आपकी याद भी भूल चुकी थी अब हमे यह समझ लेना चाहिए की हमारा साथ होना न होना कोई महत्वपूर्ण नहीं हैं | मेरा जीवन अब बस एसे ही बित जाएगा आप अपना भविष्य सवारों | लड़के ने कहा पर तुम्हारे बिना कैसा भविष्य | लकड़ी ने कहा जैसा अभी वर्तमान हैं | लड़के ने कहा पर आपती क्या हैं | लड़की ने कहा आपती नही पर इतनी समझ हैं की जब हमारा भूतकाल अच्छे बुरे समय मे साथ नही था तो अब भविष्य का कोई मतलब नहीं | वरना दिन सप्ताह मे और सप्ताह सालों मे न बदलते हम एक दूसरे के लिए नहीं बने शायद आपके लिए अच्छा भविष्य और मेरे लिए अभी संघर्स लिखा हैं अभी जीवन मे लेकीन आपसे यह वादा रहा यह संघर्ष बहोत जल्द खत्म होगा क्युकी आपने आज यहा आकार मुझे यह रियालाईस कराया हैं की हमने जो पथ पकड़ा था उसमे आप तो निरंतर चलते हुवे अपनी मंजिल के करीब हो पर मैं अभी भी सुरुवात के पहले माईल स्टोन पर खड़ी हु | धन्यवाद आपका जो आपने मुझे यह प्रतीत कराया |

30 साल बाद ( बालाजी टेली ड्रामा का असर )

एक अविवाहित महिला आज भारत की सबसे बड़ी कंपनी मे सीईओ हैं और उस कंपनी के ऑर्डर के लिए अमरीका से एक सॉफ्टवेयर एंजनीयर हर महीने अपने बीटा प्रोडक्ट का डेमो भेज रहा हैं एसा कुछ भी नहीं हैं और अगर आपने एसा कुछ भी सोच हैं तो आप बॉलीवुड साउथ इंडियन फिल्मे देखना बंध करे वास्तविक जीवन मे एसा नहीं होता

> एक अविवाहित महिला आज अपने घर मे झूले पर बैठ यह सोच रही हैं जीवन के 50 साल गुजर दिए पर वोह सफलता नहीं मिली जो उसे चाहिए थी क्युकी किसी की स्पर्धा मे उसने अपने जीवन मे इतना बदलाव किया की जीवन जीने के उसके नजरिए ने कभी उसे कमियाब नहीं होने दिया जब भी एक्स्ट्रा कोसिस की अपने बल से ऊपर मुह के बल गिरी और बार बार गिर कर स्वाभिमान और हिम्मत की जो धजीया उद्दी हैं उसे वोह खुद संभाल नहीं पाई

जिवन मे सफलता उसे ही मिलती हैं जो अपने कार्य को प्रामाणिक हो केवल किसी की स्पर्धा मे आप सफल होने की रेस मे आए तो आप न तो सफल हो पयोगे न तो अपने कार्य के प्रति प्रामाणिक |

अस्वीकरण : लेख मे मेरे निजी विचार हैं | किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति / घटना / जगह से लेख का संबंध केवल सायोग हैं

राम vs रावण 

दिनांक १६-०९-२०१७इतवार, अहेमदाबाद 
शीर्षक : राम vs रावण 
नमस्कार मित्रों #HTL #एक_पहेल के अंतर्गत आज एक एसे मुद्दे पर बात करूँगा जो हम सबको एक डर से कही ना कही छूकर बेठा है । 
प्रेम प्रेम सब कोई कहै, प्रेम ना चिन्है कोई

जा मारग हरि जी मिलै, प्रेम कहाये सोई।
बड़ा ही चालक समाज है हमारा एक तरफ़ तो ग्रंथो में औरत को देवी बनाकर पूज लिया और दूसरी और हर बच्ची घर से निकलते ही अपने आप को छुपाती है
स्कूल को निकलती हर बच्ची छेड़छाड, वलगर कममेंट, या हवस भरी नज़रों से अपने आप को या तो किसी तरह से अपने साथ पढ़ रही सखियों के समूह में या भाई बाप के संग निकल अपने आप को छुपाती है ओर अब यह हमारे राम पूजनीय समाज में एक आम बात हो गई है 
हर पिता, भाई, में एक राम होता है पर जैसे ही वोह घर से बाहर क़दम रखता है उसके अंदर का रावण जीवित हो जाता है और क़सबे शहर की आनेजाने वाली हर लड़कियों को घूर ने से लेकर वासना तक स्केन कर छोड़ देता है । 

दरस्सल हमरा समाज उस दो राहें पर खड़ा है जहाँ से वोह यह तय नहि कर पा रहा की सही रास्ता कोनसा है 

हम मॉर्डन लाइफ़ स्टाइल में अपने अस्तित्व और अपने अहंकार से लड़ रहे है । कभी मोर्डन लाइफ़ के चलते माँ बेटे सा रिश्ता कहलाने वाले देवर भाभी के संभंध को सर्मसार कर रहे है तो कभी मोहहले में ख़ुद को साबित करने घर की गृहलक्ष्मी को दहेज की माँग कर लक्ष्मी से तोल रहे है । कही बेटे-बेटी में भेद कर तिरस्कार से नई आशा को भुर्ण में मार रहे है तो कही समाज में धकनलूसी इज़्ज़त के चलते बहनो को जला रहे है । हर किसी पे आजकल राम से ज़्यादा रावण हावी है क्यूँकि हर किसिको यह समझ आता है की लड़कियाँ या तो वासना सन्तुसठि का माध्यम है या फिर घर की इज़्ज़त का ठोका हुवा रजिस्ट्रेड ट्रेडमार्क । 

एक समय था जब अख़बार में बलात्कार की घटना आती थी तो महीनो तक उसकी चर्चा और और दोषि को सज़ा मिले तक केस फोलो होता था । अब अख़बार में आए दिन बलात्कार की घटना छपती है और सब चाई बिस्कुट कि चुस्की के संग उसे यूँ नज़र अन्दाज़ करदेते है जैसे पेज३ पर छप्पी कोई गरम न्यूज़ हो । कभी कभी कोई कोई किससे में केंडल मार्च कर अपना और पोलिटिक्स उल्लू भी सीधा किया जाता है पर अपने में छूपे रावण दुर्योधन को कोई आइना दिखाना नहि चाहता । 
जिस हिसाब से समाज और सामाजिक समझ बदल रही है दोस्तों यह जंगल की आग शहर तक पहोच गई है और यह बहोत जल्द आपके या मेरे आँगन तक भी पहोच सकती है । समझ मेरी इतनी है समाज हमसे है जब तक हम ख़ुद को नहि बदलेंगे समाज नहि बदलने वाला 
हर जीव में राम है पर आजकल रावणकाल है । अयोध्या में राम मंदिर बनाने से पहले हमें अपने घर को लंका बनाने से बचाना है ।

नोंध ; लेख में मेरे निजी विचार है । 

#HTL ( हिंदी ट्विटर लीग, ट्विटर पर हिंदी ट्वीट का समूह है ) 

संस्कार और समझ 

दिनांक : १०-०९-२०१७इतवार , कल्याण -मुंबई 
शीर्षक ; संस्कार और समझ 
नमस्कार मित्रों, ५दिन की अपनी रेलसेवा के बाद कल छूटी मिली तो घर आया परिवार के संग कुछ वक़्त बिताने के बाद जैसे ही सोशल मिड़ीया चालू किया अनेको नेक विचार एवंम चर्चा सामने आने लगी कही कोई नेता को कोस रहा था तो कोई हल्के फुल्के विडीओ से दोस्तों की खिच रहा था कोई फ़ेसबुक में अपने गणपति त्योहार के तस्वीर साँझा कर रहा था तो कोई गणपति के दौरान होनेवाले हादसों से लोगों को अवगत कर रहा था , तभी मेरी नज़र सोशल मीडिया में उस ख़ास माध्यम पर गई जिसे हम लोग whatsapp कहते है । 
whatsapp वोह माध्यम है जहाँ आपको पूरे दिन संस्कार और समझ पर १००+ जीप, फ़ोटो, एवं विचार दिए जाते है । जहाँ एक बंदा फ़मिलि ग्रूप में मातापिता की सेवा सबसे बड़ी सेवा पोस्ट कर, वही बंदा सविता.काम ग्रूप सनीलियन मिल जाए भाड़ में जाए दुनिया पोस्ट करता है । दरस्सल यही हमारे संस्कार और समझ है । इस डिजिटल युग ने हमें द्वीचरित्र कर दिया है घर में कुछ बाहर कुछ, मानो जैसे हम किसी भ्रमित दुनिया में है । मानो जैसे दंभ हम भारतियों के मुख्य संस्कार है । सोशल मिड़ीया पर हम अक्शर लिखते पढ़ते और जताते है कि मेरे दादाजी, पिताजी, माता यह कहती थी वोह कहती थी पर समय आने पर उसको कोई याद नहि करता और संस्कार पे समझ हावी हो जाती है । 
संस्कार और समझ हर माता पिता अपने संतान को देते है आपने अनूमन देखा होगा किसी सापिंग मोल में बच्चे को ज़िद करते हुवे और माता पिता उसे समझते हुवे यहाँ एक छोटा सा उदाहरण मेरे घर देता हु मेरे बच्चे को हम यह सिखाते है जो खिलोने हमारे पास है उसी प्रकार के दुबारा नहि ख़रीदना चाहिए या फिर जब हम सोपिंग पर निकलते है तो हम उसे समझाते है देखो बेटा यहाँ यह चीज़ १००रु की मिल रही है पर उस दुकान यह हमें ८०रु में मिलेगी तो हमें यह कहाँ से लेनी चाहिए ?

बड़ों से केसे बात करते है, बाहर निकले तो केसे अपने आप को प्रस्तुत करे की आप में अतिरेक भी ना दिखे और नहि आप बुद्धू दिखे, शास्त्रों का नोलेज हो ना हो आज की दुनिया में अख़बार सबसे बड़ा शास्त्र है उसे हमेसा पढ़े और समाज में जो दूसरे ग़लती करते है उससे हम सिख ले । 
लेकिन सच कहु मित्रों मुझे भी डर है मेरा बच्चा मेरी तरह इस दुनिया की भेड़चाल में समिल ना हो जाए हर मातापिता अपने बच्चों को संस्कार और समझ देते है आपको भी मिले होंगे पर आज इस सोशल मिड़ीया ने सब को निजता एवंम अश्लीलता का मौलिक हक्क दे दिया है । 
मेरी एक बात याद रखना दोस्तों 

केरेक्टर का सर्टिफ़िकेट मिल सकता है पर नियत का नहि । नियत उस इंसान के संस्कार पर नहि समझ पर होती है जिसे आपसे स्वार्थ है 🙏🏻
#बोबलेभैया 
डिसक्लोजर ; लेख में मेरे निजी विचार है

लड़कपन

अंगत एवम कार्यभारित बोझ के चलते लंबा अंतराल रहा लंबे अंतराल के बाद प्रस्तुत हुआ हूँ दोस्तों आपके बीच आज एक छोटी सी कहानी लेकर आया हूं आशा करता हूं आप पसंद करेंगे #बोबलेभैया
दीनाक ; 23/7/2017 इतवार नागपुर

शीर्षक : लड़कपन

एक गाव में चुटकी अपने परिवार संग रहती थी बापू मजदूर माँ दिहाड़ी खेत मजदूर ओर चुटकी अपने घर मे बाल मजदूर, मजदूरी के इस दौर में भी चुटकी अपने पिताजी की फूलपरी थी उसका बापू उसकी हर तम्मना पूरी करने की कोसीस करता और कभी कभी न कर पाने पर खुद को घर के किसी कोने में कौस भी लेता था । एक दिन चुटकी अपने आंगन में खेल रही थी की उड़ते हुवे दो तोते आये और उसके आंगन में बैठ गए चुटकी भी दूर से उसे निहारती रही उसके संग खेलने के मन भी था और मन में डर भी । चुटकी ने अपनी खिड़की से कुछ रोटी के टुकड़े कुछ मिर्च तोते की तरफ फेका तोते उसे कहकर चले गए । साम हुई बापू और माँ घर आये चुटकी उदास बैठी थी बापू ने गुड़िया से पूछा अरे क्या हुवा बेटा चुटकी ने तोते की बात कही बापू बोला में कल जंगल से तेरे लिए एक तोता पकड़ कर लाता हु । अगले दिन बापू सारा कामकाज छोड़ अपनी गुड़िया की हसी के लिए जंगल की और निकल पड़ा तोता पकड़ ने दोपहर तक महेनत के बाद एक तोता मिल ही गया । चुटकी के बापू ने उसे एक पिंजरे में बंध किया ओर साम आते आते मानो चुटकी के घर में दीवाली जैसा माहौल हो गया । चुटकी अपने तोते के संग खेल में लीन हो गई ओर तोता भी पिंजरे के मुफत भोजन से आनंदित हो उठा । अब तो पूरे आठ दिन हो चुके थे उस बात को तोता भी अब पिंझरे में घुटन महसूस करने लगा था पर चुटकी उसे एक पल के लिये भी अकेला नही छोड़ती थी खाना पीना सब वक्त पके देकर उसे नहलाना सब कर लेती थी । पर कैद किसे पसंद होटी है तोते ने ठान ली अब बस उड़ जाना ही है । एक दिन चुटकी ने खाना डालने जैसे हई पीनझरा खोला तोता मौके की आस में बैठा था फट से उड़ गया । खुला आकश मिल तोता खुसी से यहाँ वहाँ उड़ने लगा और तोता उड़ कर जंगल जाने की बदले रास्ता भूल गया ओर सहर की और चला गया । सहर में तोता उड़ते उड़ते एक बिजली की तार पर जा बैठा ओर बिजली के करंट  के चलते मर गया । इधर गाव में चुटकी भी रो रो कर अपना हाल बेहाल कर बैठी थी ।

ईस तोते की तरह ही हमारे गाँव से शहर पढ़ने आते बच्चो का हाल है । गांव से माँ-बाप के पिंझरे से जल्दी से छूट यह लोग शहर में अपनी आजादी के लिए आते है । पार्क भर कर अश्लीलता की सब सिमा लांघ जाते है क्योंकि है उसे पहचान ने वाला या उसे सही गलत बताने वाला उसके संग कोई नही ओर वोह बच्चे बस लड़कपन में अपनी आज़ादी में रचे पड़े होते है । लडकिया फेसन के नाम पर ओर लड़के कुलडुड बनने के चक्कार में अपने सस्कार की ही नही अपनी सारी हदें पार कर जाते है । इस लड़कपन में कोई बियर दारू के नसे में डूब जाता है तो कोई सो कोल्ड वैस्या के रूप धारण करलेती है । कोई नाम ओर फेम के जूठे झालावे में कन्हैया लाल हार्दिक पटेल की तराह राजनेता का शिकार हो जात है ओर जीवन का रिश्ता अपने हतू से जोड़ लेता है । गाव में माता पिता इस आस में रहते है कि बच्चे उसका नाम करेंगे कुछ बन कर आएंगे और एक दिन यह समाचार आता है के नसे में लड़कों ने कांड कर दिया ओर जुर्म के राश्ते से होते हुवे या तो जेल गए या फिर माता पिता को उस विकट समय को झेल न पड़ता है । आज़ादी का मतलब यह नही की लड़कपन में आप अपनी मर्यादा भूल जावो । बाकी जीवन आपका है लड़कपन से गुजारो या सोच समझकर यह आप पर निर्भर करता है । 
लेख के कुछ खामिया हो तो नज़र अंदाज़ करे मेरे कहना कहेनेक अर्थ यह नही है कि जो सब बच्चके गया से आते है वोह सब ऐसा करते है । कुछ कुच अपनी जीममेदारी को समझते भी है । हमारे यह कहते है जैसी संगत वैसी रंगत तो संगत ऐसी होनी चाहिए जो आपके मुताबिक हो आपको उसके मुताबिक बनने पर मज़बूर ना होना पडे । 

(लेख में मेरे निजी विचार है) 

#बोबलेभैया 

भारतीय रेल vs पाकिस्तानी रेल 

दिनांक २५-३-२०१७ शनिवार, पूना 

दो दिन के रेस्ट के बाद आज ड्यूटी थी सुबह जल्दी ९ बजे में स्टेसन पर पहोचा, स्टेसन बाबू ने समय देखा ओर बोले भाऊँ घड़ी पीछे है शायद में समज गया मुझे जो ट्रेन मिलनेवाली थी वोह कोई ओर लेकर निकल गया अब मुझे १० बजे वाली पूना एक्षप्रेस लेकर जाना पड़ेगा इतने में बाबूसाहब का फ़ोन बजा ओर ओडर मिला की अगले स्टेसन से ओखा-पूरी खडी है उसे लिंक किया जाए, बाबू बोले आप पूना तक ट्रेन मैं जाए or पूना से चार्ज सम्भाले मैं सहमति के साथ नेक्स्ट स्टेसन ke लिए निकला 

अभी में पूना तक एक मूसाफ़र था तो पहले मेने ac कोच में बेठने के लिए देखा पर ज़्यादातर लोग सुस्त पड़े थे तो में सिल्पर में घुसा… अजीब चलाहल थी कोई सिगरेट फूँक रहा था तो कोई चाई की चुस्कियाँ ले रहा था कही पे भजन चल रहे थे तो कही पे अभी भी रात की नींद सवार थी, चलते चलते में अगले कोच में पहोचा ओर मेरे कान चमके तीन चार बुढव ओर एक युवा ट्रेन पर बातें कर रहे थे मैं ने विंडो सीट पकड़ी ओर वही जम गया कुछ रोचक माहिति के तलास में 

पहले बूढ़व ने अमरीका के ट्रेन की बातें की न्यूयॉर्क की मेट्रो ओर अलास्का के गुड्ज़ ट्रेन का जिसमें बख़ूबी वर्णन था दूसरे बुड़व ने britan की टूब ट्रेन ओर उंडरग्राउंड ट्रेन की बात की जिसमें सेफ़्टी ओर रफ़्तार थी एक ने फ़्रान्स की tgb ka वर्णन करते हुवे कहा दुनिया में येसी ट्रेन भी चलती है ओर हम अब तक इस खटारा में घूम रहे है इतने युवा भी हाँ चाचा पाकिस्तान की रेल भी हमारे जैसी नहि है वोह भी हमसे आगे है तक़रीबन आधे पोने घंटे की चर्चा सुनने  बाद मुझसे रहा नहि गया क्यूँकि बात मेरे रोज़गार पर चल रही थी 

उसकी चर्चा में कूदते हुवे मैं युवा की ओर देखा ओर बोला वाह बिना जानकारी के आप लोगों ने तो पाक़ीस्तन से भी बुरी ट्रेन कह दिया आपको मैं कुछ फेंकटस बता ता हु fir सोचना 

फिर मेने उसे कहा 

  1. पाकिस्तान में रोज़ ९ से १२ लाख ट्रेन से सफ़र करते है जब की इंडीयन रेल रोज़ाना १.२ करोड़ सवारी ढोती है
  2. भारतीय रेल रोज़ाना औसतन ३-४ करोड़ रु का गुड्ज़ फेर से कमाती है जब की पाकिस्तानी ट्रेन गुड्ज़ ट्रेन ke नाम पर सिर्फ़ सरकारी या मल्टरी के समान का आवागमन करती है मुफ़्त मैं 
  3. भारत के सभी १० मेट्रो ओर २९ अर्बन शहर उप-डाउन लिंक (डबल ट्रेक) १००% से जुड़े है जब की पाकिस्तान में सिर्फ़ दो मेट्रो इशलमाबाद कराची के बीच ६% उप डाउन लिंक है बाक़ी ९५% सिंगल ट्रेक है
  4. भारत के सभी मुख्य बंदर (कांडला, नवसरी, ओखा पोर्ट, मूँदरा पोर्ट, नवी मुंबई, कोचिन, रामेश्वर, मद्रास पोर्ट, पूरी पोर्ट कोलकाता ) के पास स्पेशल एवं स्वतंत्र eco ज़ोन है ओर पाक में किसी भी कपनी  का गुड्ज़ जान नहि है 
  5. भारत के दिल्ली मुंबई जैसे बड़े शहर मेट्रो की सुविधा है जब कि पाक me आज भी बस से काम चलना पड़ता है 
  6. भारतीय ट्रेन के सभी वर्ग की औसतन लगाया जाए तो १२० की स्पीड से चलती है जब की पाक ट्रेन ६० की स्पीड से 
  7. दिल्ली से मुंबई का सफ़र भारतीय ट्रेन १४ घंटे में पूर्ण करती है जब की उससे भी कम अंतर का इस्लामाबाद कराची ka अंतर है फिर भी पाक ट्रेन १७ घंटे लगती है 
  8. भारत के सभी सिग्नल व्यवथा अब ऑटो है (ज़्यादातर) जब की पाक me मेनुआल सिग्नल सिस्तेम है 
  9. ओर इसी मेन्यूयल सिस्तेम के चलते पाक में एक साल me ३ ट्रेन हादसे एसे होते है की खड़ी ट्रेन के पीछे दूसरी ट्रेन घुस जाना भारत में एसा हादसा हुवे ज़माना हो गया 
  10. भारतीय ट्रेन विश्व का सबसे बडा ओर व्य्श्त नेट्वर्क है जब की पाक ट्रेन की गिनती भी नहि होती फिर भी एक्षिडेंट रेसियो वह ज़्यादा है 
  11. भारत में दिल्ली अहेमदाबाद मुंबइ or कोलकाता एसे चार मुख्य शहर  jaha से आपको भारत के किसी भी शहर की सीधी ट्रेन मिलती है जबकि पाक में आपको कुछ मुख्य स्थोलो के अलावा बार बार बोर्डिंग करना पड़ता है 
  12. भारतीय ट्रेन कटरा जैसे दुर्गम इलाक़ों से निकल कर रामेश्वरम तक पहोचती है ओर nagalend के दुर्गम पहाड़ों को चिर गुजरात तक जाती है जब की पाक में sirf दो लाइन है एक बोर्डर लाइन ओर एक कराची इस्लामाबाद लाइन

ओर भी काफ़ी कुछ था कहने  इतने में पूना आ गया or बात अधूरी रह गयी पर अब शायद वोह लोग जब भी रेल से सफ़र karenge तोख़ुद को तीसरे विश्व  यात्री नहि samjhenge इतना यक़ीन है 

टटोल झोला और बोली लगा

दिनाक 04-03-2017 शनिवार, भुवनेश्वर

हम जाने अनजाने सभी इस सिस्टम के इस हिस्से से जुड़े हुवे है व्यपार दुनिया का पहला नियम है पर इस व्यापर के नाम पर क्या क्या बिकता है यह भी हम नज़र अंदाज़ नहीं कर सकते

​यहाँ सच भी बिकता है और झूठ भी
यहाँ बिकता है गुस्से के संग प्यार भी
यहाँ बिकती है विरासत, आधुनिकता भी

यहाँ धर्म भी बिकता है और धर्मिकता भी
यह भारत है …..

खरीद सके तो मान भी बिकता है
और ईमान भी ….

टटोल झोला और बोली लगा….

यहाँ हाड़ मांस की नारी बिकती है
और लंगड़ा लूला बाप भी…

कही पर बिकती है बच्चो की फुलकारी
कही पर उसकी चीखती चिल्लाहट भी

टटोल झोला और बोली लगा

यहाँ ड्रामा से भरपूर नेता और
मुद्राहिंन अदाकार बिकता है

गरीब की दुकान तो बिकती है
साहब…अमीरो की बैंक भी

टटोल झोला और बोली लगा

महंगी शाला में सस्ते लेख बिकते है
विश्व विद्यालय में विचारधारा भी बिकती है

यहाँ सब वोह बिकता है जो बिक सकता है
क्या आप भी इस के तजुर्बे कार है

#बोब्लेभैया

बस खरीददार चाहिए आप बिकोगे क्या ??

यादें…

आज कोई सरियस लेख नहीं पर अपने स्वभाव से उलट एक काव्य लेकर आया हु आशा करता हु पसंद आएगा 

मेरा यह प्रयोग पहला ओर शायद अंतिम है तो कुछ ग़लती हो तो उसे नज़र अन्दाज़ करे 🙏

दिनांक ; २२-०२-२०१७ पूना 
यादें… 

वोह अक्सर रूठ जाती थी 

रूठ कर मान जाने को 

हम उसे हर दफ़ा मनाते थे 

उसके दुबारा रूठ जाने को 
कभी नोक जोंक में चिडना

स्वभाव था उसका 

तो कभी चीडकर नोकजोक

उसकी एक सरारती अदाये थी 
आँखे बड़ी कर 

कभी डराती थी 

कभी आँखें गोल घुमा

हँसाती भी तो थी 
बात सुनकर ना सुनना 

उसकी मनमर्ज़ी थी … 

प्यारी बात दो बार सुनना 

उसकी पुरानी आदत भी तो थी 
वोह कभी चुप 

कभी बातो का भंडार थी 

कभी अपने में गुम 

कभी मुझमें कही खोई भी तो थी 
अब ना रूठ ता कोई 

ना किसी को मनाना है 

मनमर्ज़ी है अपनी 

ना किसी को कुछ जताना है 

ख़ुद से बातें होती है 

जब बातें बढ़ जाती है 

ख़ुद से दोहराते है 

हर बात जो उससे कहनी है 

अब हम भी गुम है अपने में 

हरपल उसके प्यार में जो खोए है 

मिले कभी कही एसी लड़की 

तो उसे यह संदेश देना 

आज भी है प्यार उसे यक़ीन देना 
#बोबलेभाऊ

नया साल नया संकल्प 

नया साल नया संकल्प
दिनांक १-१-२०१७ पुणे 
आम तौर पर देखा गया हैं हम भारतीय नए साल में कुछ नए संकल्प लेते है कोई दिवाली पर कोई रमज़ान पर नए संकल्प लेते है कोई कोई पार्श्व संस्कृति *से घिरे लोग (*सोशल मीडियावालों के द्रष्ट्रीकोण से) ३१st को नए संकल्प लेते है चलो देखते है इस साल के कुछ अजीबो ग़रीब संकल्प 

ट्विटर उसर इस साल यह संकल्प लेंगे की अरविंद केजरीवाल नाम का प्रोयोग किए बिना अपने ट्वीट करेंगे 
राजनैतिक पार्टियाँ इस साल यह संकलप करेंगे की अपने पक्ष ऐ कुछ चुनिंदा लोगों को मोदी के पास भाषण कला सिखने हेतु भेजेंगी
भाजपा वाले यह भी संकल्प ले सकते है की मोदिजी को सूचित किया जाए शाहबजी माइक में भी जीव होता तो वोह बेहोश हो कर मार जाता इतनी बकलोलि मत करे 
पति लोग इस साल यह संकल्प करेंगे की कुछ भी इस साल केसे भी साँस दो वीक तो क्या दो दिन दो घंटे भी घर नहीं आनी चाहिए 
डिजिटल भारत के चलते पत्नीया यह संकल्प लेगी की पति के बटवे में से क्रेडिट डेबिट कार्ड की जगह पे tm पर हाथ साफ़ कर पकड़ा नहीं जाना है 
स्कूल जाते बच्चे यह संकलप लेंगे को इस साल तो किसी ना किसी अध्यापक को मुझे थप्पड़ मारने के जुर्म में जेल की हवा खिलानी है 
लड़कियाँ इस साल यह संकल्प करेगी की सिर्फ़ पानीपुरी खाने ओर मोबाइल रिचार्ज करने किसी भी एरे गेरे नथु को मेरा सोना मेरा बाबू नहीं कहेगी 
लड़कों का अलग ही फंडा है उसके संकल्प में केसे भी हो केसी भी हो इस साल गर्ल फ़्रेंड बनाना IMP रहेगा 
सरकारी कर्मचारी ओ के पास संकल्प करने तक की फुर्शत नहीं है भाई सोच लिया इतना ही काफ़ी समजो 
अर्ध सरकारी ओर खानगी कम्पनी के कर्मचारी तह संकलप करेंगे की बस बहोत हुवाँ अत्याचार अब तो बोस जो बोलेगा सिर्फ़ सुन लूँगा काम नहीं करूँगा 
फ़ेसबुक यूज़र यह भी संकल्प ले सकते है की अब की बार whatsapp पे छाँहें बाहर 😂 
कोई दारू छोड़ ने के संकल्प के साथ ही दारू की जुदाई सहन ना करने के कारण साम को दारू की जुदाई में बार में दारू पिते देखा जा सकता है 
चलो यह सिलसिल थमेगा नहीं ओर मेरा रेड़ीयो बोल पड़ा है भाऊँ नेक्स्ट ट्रेन का सेदुआल आ गया है 
चलते है मित्रों इस संकल्प के साथ नए साल में एसे ही ठिठ ओर बेसरम बनके सब रहेंगे 
यह लेख कोरी दोपहर की सूक्की कल्पना पर आधारित है किसी भी जीवंत या मृत का इस से दूर दूर तक कोई नाता नहीं है अगर संजोगवत होता है तो वह स्वेच्छा से यह संकल्प करले की वोह अगले अरविंद केजरीवाल नहीं बनेंगे 
-बोबलेभैया 

मनोरंजन ओर राष्ट्र 

दिनांक २५-१२-२०१६ बेंगलोर

प्रणाम मित्र गण ट्विटर पर काफ़ी कुछ लिखने के बाद आज पहली बार १४० शब्दों से ऊपर लिखने की कोशिश कर रहा हु मैं कोई बड़ा लेखक तो हु नहि की भारी ओर गहरे शब्दों में अपनी बात रखु मैं अपनी सीमा जनता हुँ जो लिखूँगा अपने अनुभव के साथ सरल शब्दों में लिखने की कोशिश रहेगी 

मनोरंजन ओर राष्ट्र 

फ़िल्म दंगल जे अंत में जब गीता कुमारी गोल्ड जीतती तब भारत गण राज्य का राष्ट्रगीत बजा ओर सिनमा में सब अपनी सीट से खड़े हो गए, मेरे अगली पंक्ति के कुछ सदस्यों ने राष्ट्र गीत के सनमान में खड़ा होना उचित नहि समझा, मैं उसकी तरफ़ अपना हाथ बढ़ाया कंधे पर टेग किया ओर बिना कोई बिनव्यवहारू टिप्पणी करने के बदले प्यार से खड़ा होने के लिए विनंती की सब ने उसके सामने देखा ओर उसे भी अपने इस शोभनीय स्थिति का अंदाज़ा लग गया था, वोह शर्मिंदा ही सही खड़े हुवे ओर भारत गण राज्य के राष्ट्र गीत का समापन हूवा, उन्हो ने मेरी तरफ़ पिच्छे देखा ओर एक मीठी सी मुस्कान के साथ मेरे इस कोशिश को सराहा ओर मेने भी उतनी ज़िम्मेदारी से उसे वही सनमान के सह अभिवादित किया 

फ़िल्म पूरी हुई सब गलियारे से बाहर निकल रहे थे इतने में उस समूह के एक बच्चे की नज़र मुझपर पड़ी ओर मुझे सुनाने के लिए वोह बोला “यह फ़िल्मों में राष्ट्र गीत राष्ट्र भावना होनी हाई नहि चाहिए, हम यह ३६० रु देकर मनोरंजन के लिए आते है नाहीं के राष्ट्र भक्ति दिखाने” 

अब मेरी सब्र का बाँध टूट चुका था मेरे में बसा एक ट्विटरया लेखक ने अपनी #राष्ट्रवादी सोच को एक सेकेंड में उस वाक्यों को कई बार क्वोट टेग ओर ट्रोल कर लिया था पर जैसे हाई मेरे मुँह से शब्द निकला वोह कुछ यू था “जी बेटा आप सही कह रहे हो हम सिनमा में ३६० रु देकर मनोरंजन के लिए आते है राष्ट्र भक्ति करनी होती तो ३६० रु की रेल टिकिट लेकर जैसलमेर बोर्डर पर नहि चले जाते पर यह फ़िल्म प्रोड़ूसर इस बात को नहि समझते” वोह समूह फिर शर्मिंदा हूवा उसमें से एक मेरी उम्र के व्यक्ति ने मुझसे बात की चलते चलते हमने अपना पूरा परिचय आदान प्रदान किया 

अब कोई ट्विटर पर यह क्लेम करे की मैं बोबलेभैया से मिल चुका हु तो समझलेना दोस्तों वोह शर्मिंदा बच्चा वही था

-बोबलेभैया