दिनांक : 25-मई-2020
सोमवार – मुंबई (दहिसर)
विषय : अपेक्षा
नमस्कार दोस्तों प्रस्तुत हु अपने नए लेख अपेक्षा को लेकर | आशा रखता हु आपको पसंद आएगा |
दिन के 3:10 बज रहे थे और प्रीतम अपने पोर्टेबल रेडियो सेट पर विविध भारती से सखी सहेली प्रोग्राम सुन रहा था | आज तो प्रोग्राम मे ममताजी से संग बड़ी बुवा भी आई थी | ममता जी सखियों के पत्र पढ़ रही थी और बड़ी बुवा जवाब दे रही थी | सखियों की सिकायत पर ममता जी की प्यारी मुस्कुराहट प्रीतम के चहरे पर भी हल्की स्मित ला रही थी | आज तो ममताजी के खजाने से “पर्बतों के पैडों पर साम का बसेरा हैं….” जैसे बेहतरीन गाने भी प्रसारित हो रहे थे और इस सब मे प्रीतम अपनी मुख्य समस्या को भूल दो पल के सुकून को तलास रहा था | दर्सल आज प्रीतम का ध्यान अपने पसंदीदा प्रोग्राम सखी सहेली और अपने मन मे चल रहे विचारों के बीच गौते खा रहा था |
तभी कमरे से उसकी बड़ी दीदी की आवाज आती हैं मुन्ना अब रेडियो बंध कर और रेडी होजा | आज के दिन ही तेरे जिजू को भी अहमदाबाद जाना था जो सब जीमेदारी मुझ अकेले पर आ गई वोह होते तो इस समय तुम्हें कुछ सुझाव ही देते लड़की को क्या पूछना हैं और उसके सामने कैसे पैस आना हैं चल मुन्ना अब रेडी हो जा 4 बजे के करीब निकलेंगे तो 5 बजे के करीब वैशाली के घर पहोच पाएंगे |
इधर प्रीतम अजीब उलझन मे था | उसकी उलझन यह थी की आज वोह जीस लड़की को देखने जा रहा था, अजी देखने क्या जा रहा था बस हामी भरने जा रहा था क्युकी मेट्रीमोनी साइट पर पहले से ही उसके परिवार से अन्य सब तय हो चुका था | लड़की के पिता सेठ जगदिस चंद मुंबई के जाने माने व्यापारी हैं उसने अपनी लड़की वैशाली को इतने प्यार से बडा किया की प्यार कब जिद्द मे परिवर्तित हो गई यह किसी को पता ही नहीं चला और इस जिद्द ने बुड्ढे पिता जगदीश चंद की नाक मे दम कर दिया |वैशाली ने युवानी की दहलीज पर ही शराब,क्लब और बिना जरूरत खर्च जैसे आज 10 हजार रूपीए खर्च नहीं किए तो खाना नहीं पचेगा जैसे उड़ाऊ शोख पाल बाप की जिंदगी मे झहर घोल दिया और हद तो तब हो गई जब वैशाली ने बिना पूछे घर मे किसीसे बात किए अपने एक बोईफ्रेंड से शादी करली और उसके साथ कनेडा रहने चली गई | तीन महीने मे प्यार दूषण बन गया और कनेडा वाला लड़का ब्लेकमेलर | हर तीसरे दिन 500 से 5 हजार डॉलर की मांग के साथ वैशाली के पिता का फोन बजने लगा था और इस सब मे परेशान सेठ जगदिस चंद के पारिवारिक और व्यापारिक जीवन को तबाह कर दिया था |इस सब से निजात पाने सेठ जगदीश चंद ने कनेडा वाले लड़के को फूल एण्ड फाइनल पेमेंट कर वैशाली का डाइवॉस बड़ी मुस्किल से करवाया था |
अब डइवॉस के बाद भारत मे सेठ जगदीश चंद ने बड़ी मुस्किल से वैशाली को दुबारा शादी के लिए मानया था और वैशाली भी सशर्त इस शादी के लिए मानी थी | और सोचने वाली बात तो यह हैं के सेठ जगदिश चंद जैसे खुशाल परिवार के समकक्ष कोई परिवार वैशाली से शादी के लिए अपने लड़के की जिंदगी क्यू खराब करे | इस लिए शेठ जगदीश चंद ने मेट्रीमोनी साइट के जरिए प्रीतम का चुनाव किया था | मध्यमवर्गीय प्रीतम को इस शादी से कुर्ला जैसे पोस एरिया मे बड़ा फ्लेट फोर्ट एरिया मे अपना एक एलेक्ट्रॉनिक समान का शोरूम और हर महीने वैशाली की शर्त अनुसार 3 लाख रूपीए हाथ खर्ची के लिए शेठ जगदिश चंद से मिलना तय हुवा था लेकिन इस मे वैशाली की एक और शर्त भी थी की प्रीतम समाज के लिए उसका पति होगा पर साधारण शब्दों मे वोह केवल मेरा मेनेजर कम पर्सनल नौकर होगा | प्रीतम का वैशाली के शरीर पर कोई हक्क नहीं होगा | रसोई, घर की सफाई और अधिकतर वह कार्य जो घर की महिला की जिम्मेदारी हैं वोह सब प्रीतम करेगा शोरूम प्रोफेसनल मेनेजर के भरोसे चलेगा और हिसाब सब वैशाली को मिलेगा और शेठ जगदीश चंद द्वारा दिए गए 3 लाख महिना भी वैशाली के अकाउंट मे जमा होगा और उसको कहा कैसे खर्च करना हैं उसमे कोई वैशाली को रोक टॉक नहीं करेगा और इन सब शर्तों का पहले से प्रीतम को ज्ञात था |
हर किसी की अपेक्षाए जुड़ी थी इस सबंध से पर प्रीतम के पैर अब थोड़े डगमगा रहे थे अपने जीवन को मानो वोह बंधुवा मजहदूर बनाने जा रहा था और यही विचार उसे झँझोड़ रहा था की क्या फिर मेरा कोई अस्तित्व होगा इस समाज मे अगर समाज को मेरी शादी की यह सत्यता का अहेसास हुवा तो समाज मुझे हीनभाव से देखेगा मेरे ठिठोले उड़ाएगा और सबसे महत्वपूर्ण विचार यह था की अगर इतने पैसे मिल भी गए तो क्या रहा तो मैं नौकर ही ना | न प्रेम मिल रहा न स्त्रीसुख फिर मैं यह शादी क्यू कर रहा हु | माना की पैसे जीवन मे बहोत महत्व रखते हैं पर अपनी आजादी से भी बढ़कर नहीं होते पैसे |
4 बजे वोह और उसकी बड़ी दीदी स्पेशल टेकसी से वैशाली के घर की और निकले और यही सब विचार उसके मन मे बार बार आ रहे थे | और इस सब विचारों से अपना मन भटकाने हेतु उसने टेकसी मे रेडियो ऑन करदिया | विविध भारती पर यूनस खान का मशहूर प्रोग्राम हैलो फर्माइस चल रहा था और यूनुस खान अपने विशिस्ट अंदाज मे श्रोता का मनोरजन कर रहे थे |
5 बजे सुरू हुई मिट्टिग तकरीबन साम 7 बजे तक चली| सब की अपेक्षा अनुसार ही सब तय हुवा और प्रीतम के मन मे चल रहे विचारों को खुद प्रीतम ने अपने स्वार्थ और रुपयों की सुनहरी परत के नीचे दबा दिया | वैशाली ने आज से ही अपना हक्क जमाना सुरू करदिया हो वैसे मजाक मजाक मे बोल दिया आज मिठाई महाराज नहीं प्रीतम जी बनाएंगे और शेठ जगदीश चंद और दीदी ने ठिठोले मार इस को स्वीकृति दे दी |प्रीतम ने स्मित कर अपनी इस बँधवा मजदूरी को हामी भरदी आज से ही | प्रीतम ने हलवा बनाया काजू किसमिस के संग उन सब वस्तु का प्रयोग कर लिया जो उसके घर किचन मे दशेरा दिवाली जैसे त्योहार मे बड़ी मुस्कुल से 50 ग्राम से अधिक नहीं आती थी | इसी हलवे के कमाल ने बिना कोई मुहरत देखे अगले इतवार को ब्रह्म मुहरत मे शादी की तारीख नक्की कर ली |
5 साल बाद
रात के 8 बजे थे आकाशवाणी के विविध भारती पर हवा महल कार्यक्रम चल रहा था नाट्य का विषय था “स्वाभिमान” | प्रीतम अपने किचन मे अंडा भुरजी बना रहा था और रेडियो का लुफ़त उठा रहा था जबकी वैशाली अपने दोस्तों के संग सीटींग रूम मे वोडका मार्टीनी के आनंद मे थी | वैशाली के जीवन मे प्रीतम की कोई गणना नहीं थी जब की वैशाली ही इन सब सुविधा का प्रीतम के जीवन मे एक मात्र श्रोत थी | अब न प्रीतम का कोई स्वमान था न घर मे कोई इज्जत यहाँ तक की जिसने यह शादी कारवाई थी वोह बड़ी दीदी भी प्रीतम के जीवन से 2 साल पहले ही बाहर हो चुकी थी | प्रीतम अब केवल एक आलसी व्यक्ति था जिनको खाना पीना रहना सब मुफ़्त मे मिल रहा था और खर्च करने के लिए पैसे वोह कभी कभी वैशाली से मांग लेता था या किचन के खर्च से निकाल लेता था | सबकी अपेक्षा अनुसार सब का जीवन बित रहा था पर सेठ जगदीश चंद के हालत मे आज भी कोई फरक नहीं था | हर महीने भेजे जाने वाले 3 लाख रुपये वैशाली हपते के 10 दिन मे ही उड़ा देती थी | 20 हजार का लिपस्टिक और 30 हजार मेकअप के डजनो सेट 10 हजार से 50 हजार के जूते अलमारी मे सड रहे थे बेड सीट पर 5000 से 25000 तक खर्च कर वैशाली मानो बाप से कोई बदला ले रही थी | एलेक्ट्रॉनी शोरूम की हालत तो एसी थी की आधे से ज्यादा व्यापार मेनेजर और सहकर्मी गबन मे खा जाते थे और रही सही अमाउन्ट जो हाथ मे आए उससे खर्च निकलना बहोत था | और मुफ़्त खोरी की आदत ने एक मिडलक्लास लड़के को ब्लेकमेलर बना दिया था | बात बात मे शादी तौड़ने और समाज मे सब हकीकत बताने की धमकी से सेठ जगदीश चंद अपने भाग्य को कोष रहे थे | और यह सब आइडिया की जनक वैशाली अपने बाप को लूट रही थी |
आखिर होता भी क्या सब की अपेक्षा जो जुड़ी थी इस व्यापारी सबंध से .. ..
अस्वीकरण : लेख मे मेरे निजी विचार हैं | किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति / घटना / जगह से लेख का संबंध केवल सयोंग हैं |
नोंध : लेख मे उपयोग विविध भारती के विविध कार्यकर्म के नाम और उसके प्रस्तुत करता – ममता जी, बूढ़ी बुवा, यूनुस खान का इस लेख मे केवल भूमिका हेतु उपयोग हैं | भारतीय रेडियो सर्विस मे आपका कार्य सराहनीय हैं |